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24 molecules

प्रार्थना 24 molecules को balance में लाती है। कुल 84 लाख योनियां होती है, जिसमे से कुछ male gender की योनि होती है, कुछ female gender की। Male और female के योग से संतान होती है। हालाकिं द्रोण, जो कि कौरवो और पांडवों के teacher थे, उनके जन्म के बारे में कहा गया कि उनका जन्म दोने से हुआ था। उनके पिता ने दोने में अपने वीर्य को रखा, और द्रोण का जन्म हुआ। पुरुष भी संतान बना सकता है, चाहे तो। एक neutral gender भी है, जिसको हिजड़ा कहा गया। जैसे एक example है अम्बा का। जिसने भीष्म से विवाह करने को कहा, क्योंकि उसे भीष्म ही उठा के लाये थे स्वयंवर से। लेकिन भीष्म ना माने तो अम्बा ने तपस्या की और अगले जन्म में हिजड़ा बनके आयी शिखंडी के रूप में। तपस्या किसी भी दिशा में की जा सकती है। तपस्या यानी अपनी सारी energy को एक दिशा में लगा देना। लेकिन दिशा यदि समाज के against हो तो कष्ट और बीमारी आती हैं सारे परिवार को। बीमारियां अगले शरीर में carry forward भी हो जाती हैं। इसलिए बीमारियों से निजात पाना बहुत जरूरी है। prevention रखना है ये कोरोना काल ने बताया। क्योंकि cure यानी कि बीमारियों के आने के बाद उसक

मेरा शुभ हो

Past writes future. भविष्य की नींव जब पड़ ही चुकी है तो वर्तमान में मेहनत क्यों करनी?  यह समझने के लिए कर्म और श्रम में अंतर समझना जरूरी है। श्रम करने के लिए ऊर्जा चाहिए होती है। शक्ति और ऊर्जा भिन्न है। शक्ति चाहिये कर्म के प्रति भक्ति रखने के लिए। अपने कर्मफल जो कमाए हुए है, वो हमें मिलता अवश्य है।  कर्म यानी बुद्धि ने जिस दिशा में निर्णय लिया, उसी के अनुसार कर्मफल निर्धारित हो जाता है। हर कर्म के लिए कर्मफल निश्चित होता है। श्रमफल vary करता है situation के अनुसार। जितना भी confusion फैला हुआ है, सिर्फ इसी कारण से, कि यह मानना नही चाहते कि कर्म का निश्चित कर्मफल है, और श्रम और कर्म में अंतर है। राजा दशरथ को confusion हुआ कि कोई जानवर है, और तुरन्त तीर चला दिया। श्रवण कुमार मारे गए। उनके रोते हुए माता पिता ने श्राप दिया दशरथ को, तुम भी पुत्र मोह में मरोगे। तब तक राजा दशरथ के कोई पुत्र नही था।  पुत्र आया, फिर वन को गया, और दशरथ पुत्र मोह में मरे।  आज का युवा वर्ग यही प्रश्न उठाता है, कि कोई भी effort क्यों करना, जब destiny पहले ही लिखी गयी है। जीवन को बिना कष्ट के बिताना है, तो ज्ञान कम

निश्छलिस्म

प्रार्थना करके अपने molecules (तत्वों) को balance में लाया जाता है। प्राणी 24 molecules से बनता है। 5 तत्वों से शरीर को समझना मुश्किल है। सनातन संस्कृति और सनातन धर्म अलग अलग है। धर्म यानी religion हमेशा region based होता है। जहाँ जैसे हालात है, वैसी ही परंपरा निभाई जाती है। religion अगर expansion करना चाहेगा तो खत्म हो जाएगा। देश और राष्ट्र भी अलग अलग concepts हैं। अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखनी जरूरी है। देश यानी वो स्थान जहाँ आपका जन्म हुआ है, आप पले बढ़े हैं। प्रकृति का नियम है कि कन्या की जड़ें उसके पति से जुड़ जाती है। इसीलिए परम्परा बनाई गई कि कन्या अपने पति के स्थान पर रहती है, विवाह के बाद। किसी भी कार्य के best results मिलते हैं, जब अपनी जड़ों से जुड़े रहकर उस कार्य को किया जाए। देश ही होता है अपना region और उसी से set होता है अपना religion। निश्छलिस्म universal religion है। यानी कि practical सनातनता। मनुष्य का धर्म, जन्म से पहले और मृत्यु के बाद एक ही होता है, निश्छलिस्म।  निश्छलिस्म बताता है Art of Leaving। आपको पता होना चाहिए कि आपको क्या छोड़ना है, कैसे छोड़ना है। नवजात शिशु

विवाह है योग

आज 24 अक्टूबर की कृश्नांश कथा में मनिदेवकी ने बताया कि ज्ञान की आवश्यकता हमेशा जीवन मे रहती है। 5 dimensions होती हैं ज्ञान को।  विवाह में समस्याएं भी ज्ञान की कमी के कारण होती है। स्वयम्वर की परंपरा हमेशा से रही, परन्तु कन्या में स्वयं ही वर चुनने की योग्यता होनी चाहिए। पार्वती ने स्वयं चुना शंकर को, और तपस्या की जिससे शंकर भी उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करें। तपस्या का अर्थ है तन, मन और आत्मा से एक ही कर्म में लग्न हो जाना। समर्पण पूर्ण होना चाहिए। शुक्राचार्य ने female की सीरत बनाई, और design इस तरह से बनाया गया कि यदि तन और मन से कन्या समर्पित हो जाती है, तो उसका आत्मा नैचुरली उसमे जुड़ जाता है। ब्रह्मा ने बनाया स्त्री का physical रूप, और देवो और दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने बनाई सीरत कन्या की। अश्वनीजी शुक्राचार्य नारीज्ञान के expert हैं, और ऐसी सभी जानकारी उन्होंने उपलब्ध करवाई। आत्मा यानी ऊर्जा का warehouse। और सूर्य को परमात्मा भी इसीलिए कहा गया क्योंकि हम अपनी effeciency के अनुसार सूर्य से energy लेते रहते हैं। चन्द्रमा देता है शीतल energy जिससे ज्ञान जागता है। और सूर्य देता

Past,Present,Future

  Mannid evki Friday, October 23, 2020 Past, Present, Future   आज 23 अक्टूबर 2020 को कृष्णईष्ट दरबार मे कृश्नांश कथा करवाई मनिदेवकी ने। श्री शिव का जल अभिषेक, पुष्प अर्चन, और प्रार्थना करके शुरू हुई कृश्नांश कथा। मनिदेवकी ने बताया कि past यानी पिछली सांस, जो बीत गयी, future यानी अगली सांस, पता नही आएगी या नही। जीवन वर्तमान में है, यानी अभी जो सांस चल रही है।  History से हम सीख सकते हैं कि क्या करने पर क्या results प्राप्त होंगे।जैसे रामायण से सीख सकते हैं कि किस्मत कुछ नही होता, राम का राज्याभिषेक होना तय था, फिर भी वनवास लेना पड़ा उन्हें। महाभारत के characters से सीख सकते हैं, कि कौन क्या करता है, और results कैसे आये। काली मां की कथा के माध्यम से बताया कि रक्तबीज को मारा उन्होंने। और महाभारत के समय, कृष्ण के आह्वान पर उन्होंने युद्ध में सभी योद्धाओं को मारा। वही काली अब कलियुग में निश्छलमाता के रूप में आई और संतुष्टि इपदेवी में merge हो गईं।  कलियुग में कृश्नांश भगवान 64 रूप में ब्रह्मांड की देखभाल कर रहे हैं। आपको पता होना चाहिए कि आपको इच्छा क्या है। जो चाहिए, उसी के भगवान रूप से आपक